पात्र-परिचय
प्राचार्या जी- साड़ी पहने हैं।
अध्यापिकाएँ- साड़ी पहने हैं।
अध्यापकगण- पैंट-शर्ट पहने हैं।
चपरासी-कुर्ता-पायजामा पहने है।
विभिन्न आयुवर्ग के छात्र-छात्राएँ- सभी स्कूल यूनीफार्म पहने हैं।
(पर्दा खुलता है)
(पहला दृश्य)
(गाँव की प्राथमिक पाठशाला है। मंच पर आम का पेड़ रखा है, जिसमें कुछ आम लटक रहे हैं। कच्चे आम का ढेर रखा है। कुछ बच्चे अपने स्कूल-बैग में आम भर रहे हैं।)
(चपरासी का प्रवेश)
चपरासी : (बच्चों से) क्या हो रहा है? छुट्टी हो गई, घर नहीं गए? (सभी बच्चे डरने लगे)
एक बच्चा : वो...आ...खेल रहे थे।
चपरासी : बस्ते में आम भर रहे हो, चलो बड़ी बहन जी के पास।
(बच्चों का चपरासी के साथ प्रस्थान)
पट-परिवर्तन
(दूसरा दृश्य)
मंच पर कुर्सी-मेज पड़ी है, कुर्सी पर प्राचार्याजी विराजमान हैं। मेज पर कुछ रजिस्टर रखे हैं, कुछ कुर्सियाँ और पड़ी हैं।)
(चपरासी का बच्चों के साथ प्रवेश)
(बच्चे डर के कारण भयभीत हैं।)
चपरासी : बहन जी! विद्यालय की छुट्टी हो गई। यह बच्चे घर न जाकर विद्यालय के आम के पेड़ से आम तोड़ कर उन्हें बस्ते में भर रहे थे।
(प्राचार्या जी अपनी कुर्सी से उठ कर बच्चों के पास आती हैं व उनके बीच में खड़ी होकर उनके सिर पर हाथ फेरती हैं। बच्चों का भय कम होता है।)
प्राचार्या जी: प्यारे बच्चों! फल खाना अच्छा है, वैसे भी आम तो फलों का राजा है, लेकिन तुमने तो चोरी की है, वह भी कच्चे आमों को पूरी तरह पकने भी नहीं दिया। बच्चों! आम बस्ते से निकाल कर रख दो और सीधे घर जाओ। देर होने पर घर वाले चिन्ता करते हैं। कल विद्यालय जरूर आना, तब प्रार्थना-सभा में तुम्हें अच्छी-अच्छी बातें बतायेंगे।
(बच्चे बस्ते से आम निकाल कर मेज पर रखते हैं।)
बच्चे: प्रणाम बहन जी!
(प्राचार्या जी बच्चों के गाल थपथपाती हैं।)
बच्चे सहजभाव से घर की ओर प्रस्थान करते हैं।)
पट-परिवर्तन
(तीसरा दृश्य)
(प्रातःकालीन प्रार्थनासभा का दृश्य है। माइक लगा है, कुछ बच्चे माइक के सामने खड़े हैं। प्राचार्या जी बीच में खड़ी हैं। अन्य अध्यापक-अध्यापिकाएँ उनके अगल-बगल खड़े हैं। बच्चे लाइन लगा कर कई पंक्तियों में खड़े हैं।)
(प्रार्थना प्रारम्भ होती है।)
इतनी शक्ति हमें देना दाता,
मन का विश्वास कमजोर हो न-2
हम चलें नेक रस्ते पर, हमसे
भूल कर भी कोई भूल हो न
इतनी शक्ति.........
दूर अज्ञान के हों अँधेरे,
तू हमें ज्ञान की रोशनी दे।
बैर हो न किसी का किसी से,
भावना मन में बदले की हो न।
इतनी शक्ति...........
हम न सोचें हमें क्या मिला है,
हम ये सोचें किया क्या है अर्पण।
फूल खुशियों के बाँटें सभी को,
सबका जीवन ही बन जाए मधुबन,
इतनी.......
अपनी करुणा का जल तू बहा के
कर दे पावन हर एक मन का कोना।
इतनी शक्ति...............
(माइक पर खड़े बच्चे किनारे हो जाते हैं, प्राचार्या जी माइक पर आती हैं।)
प्राचार्या जी : यह जानकर क्या करोगे? हमारा उद्देश्य है कि ऐसी गलती दुबारा न तो यह बच्चे करें, न ही दूसरे कोई बच्चे। बच्चों! तुममें से कोई बच्चा बता सकता है कि इन बच्चों ने क्या गलती की है?
(रोहित आता है।)
रोहित : बहन जी! यदि इन बच्चों को गलती का एहसास हो गया हो तब इन्हें क्षमा कर दीजिए। आपने ही सिखाया है कि गलती का एहसास हो जाने पर क्षमा कर देना चाहिए, क्योंकि क्षमा से बड़ा कोई अस्त्र नहीं होता है।
(इतने में चोरी करने वाले बच्चों में एक बच्चा सिर झुकाए हुए आता है।)
(चोरी करने वाले अन्य बच्चे भी आगे आ जाते हैं व सिर झुका कर खड़े हो जाते हैं।)
प्राचार्या जी : सजा तो अवश्य मिलेगी। इन्हें क्या सजा दी जाएगी, यह बताएँगे अजय सर।
(अजय सर माइक पर आते हैं।)
अजय सर : प्राचार्या जी के आदेशानुसार इन बच्चों को अनोखी सजा दी जाएगी। यह चारों बच्चे विद्यालय में एक-एक पेड़ लगाएँगे। माली के सामने यह लोग खुरपी से गड्ढा खोदकर माली के निर्देशानुसार पेड़ लगाएँगे व उसमें पानी डालेंगे।यह कार्य यह बच्चे खेल के पीरियड में करेंगे।
(पटाक्षेप)
(चपरासी का बच्चों के साथ प्रवेश)
(बच्चे डर के कारण भयभीत हैं।)
चपरासी : बहन जी! विद्यालय की छुट्टी हो गई। यह बच्चे घर न जाकर विद्यालय के आम के पेड़ से आम तोड़ कर उन्हें बस्ते में भर रहे थे।
(प्राचार्या जी अपनी कुर्सी से उठ कर बच्चों के पास आती हैं व उनके बीच में खड़ी होकर उनके सिर पर हाथ फेरती हैं। बच्चों का भय कम होता है।)
प्राचार्या जी: प्यारे बच्चों! फल खाना अच्छा है, वैसे भी आम तो फलों का राजा है, लेकिन तुमने तो चोरी की है, वह भी कच्चे आमों को पूरी तरह पकने भी नहीं दिया। बच्चों! आम बस्ते से निकाल कर रख दो और सीधे घर जाओ। देर होने पर घर वाले चिन्ता करते हैं। कल विद्यालय जरूर आना, तब प्रार्थना-सभा में तुम्हें अच्छी-अच्छी बातें बतायेंगे।
(बच्चे बस्ते से आम निकाल कर मेज पर रखते हैं।)
बच्चे: प्रणाम बहन जी!
(प्राचार्या जी बच्चों के गाल थपथपाती हैं।)
बच्चे सहजभाव से घर की ओर प्रस्थान करते हैं।)
पट-परिवर्तन
(तीसरा दृश्य)
(प्रातःकालीन प्रार्थनासभा का दृश्य है। माइक लगा है, कुछ बच्चे माइक के सामने खड़े हैं। प्राचार्या जी बीच में खड़ी हैं। अन्य अध्यापक-अध्यापिकाएँ उनके अगल-बगल खड़े हैं। बच्चे लाइन लगा कर कई पंक्तियों में खड़े हैं।)
(प्रार्थना प्रारम्भ होती है।)
इतनी शक्ति हमें देना दाता,
मन का विश्वास कमजोर हो न-2
हम चलें नेक रस्ते पर, हमसे
भूल कर भी कोई भूल हो न
इतनी शक्ति.........
दूर अज्ञान के हों अँधेरे,
तू हमें ज्ञान की रोशनी दे।
बैर हो न किसी का किसी से,
भावना मन में बदले की हो न।
इतनी शक्ति...........
हम न सोचें हमें क्या मिला है,
हम ये सोचें किया क्या है अर्पण।
फूल खुशियों के बाँटें सभी को,
सबका जीवन ही बन जाए मधुबन,
इतनी.......
अपनी करुणा का जल तू बहा के
कर दे पावन हर एक मन का कोना।
इतनी शक्ति...............
(माइक पर खड़े बच्चे किनारे हो जाते हैं, प्राचार्या जी माइक पर आती हैं।)
प्राचार्या जी : सुप्रभात बच्चों!
सब बच्चे : सुप्रभात बहन जी!
प्राचार्या जी: बच्चों! विद्यालय में आम का पेड़ लगा है, कल कुछ बच्चों ने विद्यालय की छुट्टी होने के बाद पेड़ से आम तोड़े, अभी अप्रैल का महीना है, इसलिए आम कच्चे हैं। बच्चों ने कच्चे आम ही तोड़ लिए, वह भी बिना पूछे।
एक बच्चा: बहन जी! कौन हैं वह बच्चे?
प्राचार्या जी : यह जानकर क्या करोगे? हमारा उद्देश्य है कि ऐसी गलती दुबारा न तो यह बच्चे करें, न ही दूसरे कोई बच्चे। बच्चों! तुममें से कोई बच्चा बता सकता है कि इन बच्चों ने क्या गलती की है?
एक बच्चा: चोरी की।
प्राचार्या जी: ठीक है सुमित! चोरी के अलावा और भी कोई गलती की हो तो बताओ?
दूसरा बच्चा: कच्चे आम तोड़ लिए, आमों को पकने का पूरा समय नहीं दिया।
प्राचार्या जी: ठीक है प्रिया! अन्य कोई गलती ऐसी भी है, जिससे किसी को खतरा हो सकता था।
तीसरा बच्चा: हाँ बहन जी! इन्होंने पत्थर फेंक कर आम तोड़े होंगे, जिससे पत्थर इनको भी लग सकता था। दूसरों को भी।
प्राचार्या जी : शाबाश रोहित! आगे आओ।
(रोहित आता है।)
प्राचार्या जी :रोहित! तुम ही बताओ कि इन बच्चों को क्या सजा दी जाए?
रोहित : बहन जी! यदि इन बच्चों को गलती का एहसास हो गया हो तब इन्हें क्षमा कर दीजिए। आपने ही सिखाया है कि गलती का एहसास हो जाने पर क्षमा कर देना चाहिए, क्योंकि क्षमा से बड़ा कोई अस्त्र नहीं होता है।
प्राचार्या जी : (रोहित की पीठ ठोकते हुए) ठीक कहा रोहित तुमने.....
(इतने में चोरी करने वाले बच्चों में एक बच्चा सिर झुकाए हुए आता है।)
बच्चा : बहन जी! हमने चोरी की है, हमें कड़ी सजा दीजिए।
(चोरी करने वाले अन्य बच्चे भी आगे आ जाते हैं व सिर झुका कर खड़े हो जाते हैं।)
प्राचार्या जी : सजा तो अवश्य मिलेगी। इन्हें क्या सजा दी जाएगी, यह बताएँगे अजय सर।
(अजय सर माइक पर आते हैं।)
अजय सर : प्राचार्या जी के आदेशानुसार इन बच्चों को अनोखी सजा दी जाएगी। यह चारों बच्चे विद्यालय में एक-एक पेड़ लगाएँगे। माली के सामने यह लोग खुरपी से गड्ढा खोदकर माली के निर्देशानुसार पेड़ लगाएँगे व उसमें पानी डालेंगे।यह कार्य यह बच्चे खेल के पीरियड में करेंगे।
अजय सर : हर बच्चा एक पेड़ लगाए।
धरती तब स्वर्ग बन जाए।
प्राचार्या जी : हर बच्चा एक पेड़ लगाए।
सब बच्चे :धरती तब स्वर्ग बन जाए।
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