लगता है कुछ पाना चाहती हैं,
कुछ ढूँढ़ रही हैं, दूर आकाश में–
क्षितिज में कहीं ।
क्या कुछ खो गया है ?
कुछ प्यासी सी हैं, कुछ अतृप्त सी,
क्या ज्ञान की प्यास भी कभी बुझी है ?
इन प्यासी आँखों में, मैं क्यों डूब जाती हूँ ?
हाँ–
शायद इस सागर में डूब जाने के लिए ।
अद्भुत संयोग है, सागर स्वयं प्यासा है,
ठीक ही है,
क्या सूर्य को भी कभी विश्राम मिला है ?
कुछ ढूँढ़ रही हैं, दूर आकाश में–
क्षितिज में कहीं ।
क्या कुछ खो गया है ?
कुछ प्यासी सी हैं, कुछ अतृप्त सी,
क्या ज्ञान की प्यास भी कभी बुझी है ?
इन प्यासी आँखों में, मैं क्यों डूब जाती हूँ ?
हाँ–
शायद इस सागर में डूब जाने के लिए ।
अद्भुत संयोग है, सागर स्वयं प्यासा है,
ठीक ही है,
क्या सूर्य को भी कभी विश्राम मिला है ?
अन्दर कहीं कुछ और है, पाने की कोशिश करती हूँ,
मैं अतृप्त रह जाती हूँ ।
दोनों की ही अतृप्ति में कैसा अद्भुत आनन्द है ।
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