अन्त कर सम्बन्ध को भी हो गयी निश्चिन्त हूँ मैं ।
टूटते कर्तव्यबन्धन देख कर विचलित हुई मैं । ।
जानना तुम चाहते हो, जाग कर मैं क्या करुँगी ।
रात भर पीड़ा तुम्हारे प्यार की, गिनती करुँगी । ।
तुम्हें पा कर सोचती थी, यही सुन्दर सत्य सम्भव ।
उपेक्षा पा कर तुम्हारी, हो गया है सत्य उद्भव । ।
क्या सिखाना चाहते थे, प्रेम की उन्मुक्त भाषा ।
जान गयी हूँ प्रिय,तुम्हारे प्रेम में है निराशा । ।
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