Tuesday, November 27, 2018

मित्र

मित्र! मैंने तो तुम्हें चाहा बहुत था ।
पर कभी चाहा तुमने मुझे?
मित्र! मैंने तो तुम्हें समझा बहुत था ।
पर कभी समझा तुमने मुझे?
सोचती थी, झर रहा, अमृत मनोरम ।
आ गया मधुमास सुन्दर–
अमिय, शीतल, मधुर, मोहक ।
बह रहा था पवन सुरभित ।
पी मधुर आनन्द के क्षण ।
झूमती सी आ रही थी ।
ले तभी तुम आ गए क्यों ?
कंकड़ी डाली हृदय में,
तोड़कर तुम मधुर बन्धन–
छोड़ते से विगत जीवन ।

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