Saturday, November 24, 2018

जल संरक्षण


पात्र परिचय
स्त्री पात्र
बुआजी- एक वृद्धा स्त्री जिन्हें मोहल्ले में सब लोग बुआजी कहते हैं।
कैथरीन जी- आयुवर्ग लगभग चालीस वर्ष
पुरुष पात्र
अमित जी
सुशील जी
रमेश जी
जवाहर जी
अंकित जी
बच्चे
बसंती
शशिकान्त
मालिनी
भारतेन्दु
सुमन
वेशभूषा
पात्र-अभिनय के अनुकूल वेशभूषा








(पर्दा खुलता है)

दृश्य
(स्टेज पर पार्क का दृश्य है। पार्क में जमीन पर कई बच्चे बड़े बैठे हैं। एक पुरुष खड़े होकर सबको कुछ सम्बोधित कर रहे हैं।)

अमित जी         : (खड़े होकर सबको सम्बोधित करते हुए) आप सभी लोग जानते ही होंगे कि संयुक्त राष्ट्र विश्व जल विकास रिपोर्ट 2003 के अनुसार भविष्यवाणी है कि सन् 2025 तक भारत का एक बड़ा हिस्सा विश्व के अन्य जल की कमी वाले देशों और क्षेत्रों की तरह जल की नितान्त कमी महसूस करेगा, किन्तु यदि हम अभी भी जागरूक हो जाएँ और जल-संरक्षण ठीक प्रकार से करें तो हम भविष्य में होने वाली इस आपदा से बच सकते हैं।

भारतेन्दु             : चाचा जी! जल संकट क्यों बढ़ रहा है?
बुआजी             : बेटा! मैं बताती हूँ, पहले नल नहीं थे। हम लोग या तो कुएँ से पानी खींचते थे या हैण्डपम्प से। इस कारण जितनी जरूरत होती थी उतना पानी निकालते थे। अब नल हैं, खुले हैं, टपक रहे हैं, पानी बह रहा है, किसी को चिन्ता नहीं है। सुविधा का दुरुपयोग हो रहा है।

अमित जी         :  ठीक कहती हैं बुआजी! आप लोगों ने देखा होगा रेल में जो नल लगे होते हैं, उनको दबाने से पानी निकलता है, इसलिए पानी कम खर्च होता है। हम लोगों के घरों में टोंटी वाले नल हैं, जिन्हें हम लोग खोल कर आवश्यकता से अधिक पानी खर्च करते हैं। जैसे- हाथ धोने में वे कुल्ला करते समय भी नल पूरा खुला रहता है। इस प्रकार अधिक पानी खर्च होता है।

रमेश जी                      : भाइयों एवं बहनों! आज हम तय कर लें कि हम किस तरह पानी की बचत कर                                           सकते हैं।
भारतेन्दु                       : अंकल! आपकी बातें बच्चे सुनें।
रमेश जी                       : बच्चे क्यों सुनें?
भारतेन्दु                       : अंकल! अभी आपने सम्बोधित करते हुए कहा- भाइयों एवं बहनों, प्यारे बच्चों नहीं                                        कहा।
(सब हँसने लगे)

रमेश जी                       : शाबाश भारतेन्दु! तुमसे भाषणकला सीखूँगा, वाकई  मेरी गलती है। हाँ तो प्यारे-प्यारे बच्चों, भाइयों एवं बहनों! जल-संरक्षण के बारे में अपनी- अपनी राय दें।

भारतेन्दु                       : अंकल! मै। बताऊँ?
रमेश जी                       : हाँ बेटा, बताओ!
भारतेन्दु                       : जल-बचत करने में कई तरीके हो सकते हैं-

*  घर या बाहर कोई भी नल टपकता देखें तो उसे तुरन्त ठीक करवायें या सम्बन्धित व्यक्ति या विभाग से ठीक करवाने के लिए कहें।
*  यदि हम लोग घरों में वाशबेसिन में वैसे ही नल लगवा लें जैसे रेल में लगे होते हैं तो हाथ धोने में कुल्ला करने आदि में पानी कम खर्च होगा।
* घर में बर्तन माँजने के लिए भी बाल्टी में पानी लेकर बर्तन धोयें। नल की धार में बर्तन धोने से पानी अधिक खर्च होता है।
*  जिस प्रकार बिजली का मीटर लगा होता है, उसी प्रकार घरों,  विद्यालयों कार्यलयों में  वाटर-मीटर लगा हो जिससे पानी के खर्च के अनुसार ही बिल आये।

जवाहर जी        : शाबाश बेटा! सब बच्चे तुम्हारी तरह हों तो देश का भविष्य बहुत अच्छा होगा।
मालिनी            : मैं भी जल-बचत के कुछ बिन्दुओं पर आप लोगों का ध्यानाकर्षित करना चाहती हूँ।
जवाहर जी        : अंकित बाबू! आपकी बेटी की वक्तव्य शैली में तो नेतृत्व के गुण हैं। (मालिनी की ओर देखते                  हुए) हाँ बेटी! बोलो।


मालिनी                        : हम लोग घरों में बाथरूम में और रसोई में पानी भर कर रख लें। हर कार्य जैसे-

*  कपड़े धोना, नहाना आदि उसी पानी से करें। नल की धार खोलकर कार्य करने से अधिक पानी खर्च होता है।
*  नहाने में शावर का उपयोग करके बाल्टी से ही नहाएँ।
*  कारों आदि को पाइप से धोकर बाल्टी-मग से धोयें।
*  सब्जी-दाल आदि धोने से निकले हुए पानी को पौधों में डालें।
*  पीने के लिए गिलास में उतना ही पानी लें, जितना पीना हो।
*  बाल्टियों में पहले दिन के बचे हुए पानी को फेंके। इस पानी का उपयोग करें।

(मालिनी बैठ जाती है। सब लोग ताली बजाते हैं।)

सुशील जी         : भूजल स्तर गिरने का एक बहुत बड़ा कारण है कि अब कच्ची जमीनें कम रह गई हैं। पहले कच्ची जमीनें होने के कारण जल की कमी नहीं होने पाती थी। जल में स्वतः शुद्धिकरण की क्षमता होती है। अतः धरती के निचले स्तर पर जाकर जल स्वतः शुद्ध हो जाता है।वर्षा का जो जल पृथ्वी पर गिरता है, पृथ्वी की कच्ची सतह जो जल सोख लेती है, संरक्षित हो जाता है। बाकी जल नदियों, नहरों, नालों आदि के माध्यम से नदी और अन्ततः सागर में जा मिलता है जैसा कि हम जानते हैं कि सागर का पानी खारा होता है और पीने योग्य नहीं होता है।

अंकित जी        : सुशील जी! यह बताइए कि आजकल वर्षा का जल कैसे संरक्षित किया जा सकता है?
सुमन               : (हाथ खड़ा करती है) अंकल! मैं बताऊँ।
अंकित जी        : बताओ बेटी!
सुमन               : हमारे विद्यालय में बताया गया था कि वर्षा जल संचयन या भूजल संचयन से बहुत से लाभ होते हैं? जैसे-

*  भूजल-संरक्षण से मिट्टी की नमी बनी रहती है। अतः मिट्टी उपजाऊ बनी रहती है।
*  धरती का जल-स्तर गिरने नहीं पाता है, जिससे धरती फटने की समस्या नहीं हो सकती है।
*  भूजल संचयन के लिए किसी टैंक आदि की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
* भूजल संचयन में धरती का कोई भी हिस्सा घेरना नहीं पड़ता है।
*  भूजल संचयन बाढ़ तथा सूखे के खतरे को कम करता है।
*  भूमिगत जल से मच्छर नहीं पनपते हैं।
*  भूमिगत जल में मनुष्य-मल, पशुमल तथा गंदगी आदि नहीं     मिल सकती है।
*  भूजल वाष्पीकृत नहीं होता है।
*  भूजल वनस्पति को नमी प्रदान करता है।

(मालिनी बैठ जाती है। सब लोग ताली बजाते हैं।)
कैथरीन जी       : (खड़े हो कर मालिनी से) जीती रहो बेटी! खूब उन्नति करो।
अंकित जी        : हाँ तो सुशील जी! भूजल संचयन के लाभ तो पता चल गए। अब बताइए कि हम भूजल संचयन में किस प्रकार सहयोग दे सकते हैं।
सुशील जी         : जल संरक्षण भूजल संचयन के लिए छोटे-बड़ेकई स्तरों पर व्यावहारिक कार्य करने तथा जनचेतना फैलाने की आवश्यकता है। केन्द्रीय-भूमि-जल-बोर्ड ने कृत्रिम-जल-भरण पर काफी अध्ययन किया है। इसने भूजल भरण की कई तकनीकों को विकसित किया है।
(शशिकान्त हाथ खड़ा करता है।)
सुशील जी         : हाँ बताओ बेटा!
शशिकान्त        : अंकल! मैं केन्द्रीय-भूमि-जल-बोर्ड द्वारा विकसित की गई तकनीकों के बारे में बताऊँ?
सुशील जी         : हाँ बताओ बेटा!
शशिकान्त        : (खड़े होकर) केन्द्रीय-भूमि-जल-बोर्ड ने भूजल संचयन की कई विधियाँ अनुमोदित की हैं, जो शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए अलग-अलग हो सकती हैं शहरों में मकानों, फर्श, सड़कों आदि      की संरचना गाँवों से भिन्न होती है।शहरी क्षेत्रों में जगह कम होती है। अतः वर्षा जल-संचयन प्रणाली इस तरह डिजाइन की जाती है कि यह ज्यादा जगह घेरे। इसकी कई तकनीकें हो सकती हैं-

*  पुनर्भरण गड्डा
*  पुनर्भरण खाई
*  नलकूप
*  पुनर्भरण कूप
*  रिचार्ज पिट बोर सहित
*  स्टोरेज टैंक
*  सूखा कुआँ
*  रिचार्ज शाफ्ट आदि
इसी प्रकार ग्रामीण क्षेत्रों के लिए....
बसंती   : (खड़े होकर बीच में बोलते हुए) ग्रामीण क्षेत्रों के लिए मैं बताऊँ। शशिकान्त बहुत देर से बोल रहा है।
(सब हँसने लगते हैं।)

बसंती   : (खड़े होकर) ग्रामीण क्षेत्रों में सामान्यतया सतही फैलाव की तकनीक अपनाई जाती है क्योंकि यहाँ पर जगह प्रचुरता से उपलब्ध होती है। इसलिए केन्द्रीय   भूमिजल बोर्ड के अनुसार कई तकनीकें हो सकती हैं-
*  गली प्लग
*  परिरेखा बंध
*  गैबियन संरचना
*  परिश्रवण टैंक
*  चेक बाँध
*  पुनर्भरण शाफ्ट
*  पुनर्भरण कूप
*  भूमिगत जल बाँध आदि।

(बसंती बैठ जाती है।)
सुशील जी         : बहुत अच्छा बसंती! भूजल बोर्ड कार्यालय अधिकतर हर प्रदेश में हैं। हम लोग छोटे-छोटे उपायों द्वारा स्वयं जल की बचत करेंगे। जल बोर्ड की मदद लेकर अपने मोहल्ले में जल-संरक्षण-प्लान्ट लगवायेंगे।अन्य लोगों को भी जल बचाने के लिए समझाएँगे।

(पटाक्षेप)


No comments:

Post a Comment