शिखे! तुम अविरल मौन जलो ।
तम का गले हिमालय निशि भर,
भले स्वयं पिघलो । ।
शिखे!––––
अँधियारों के टूटे बन्धन,
नवप्रकाश का हो अभिनन्दन
अंधकार वाली बगिया का
करो उर्मियों से नित सिंचन
झंझाओं में भी न रुकें पग
सतत सदैव चलो । ।
शिखे!––––
बीज किरण के तुम नित बोना,
जगमग हो जग का हर कोना
अपने अन्तर की माला में–––
नई ज्योति के सुमन पिरोना
सुधा बाँटना सदा जगत को
गरल भले निगलो––– ।
शिखे!––––
जब भी कभी उदासी छाए
अंधकार से मन घबराए
तब आवाज मुझे देना मैं–––
आऊँगा दिनमान उठाए
मधु ऋतु की बन नयी भोर तुम–
यह मौसम बदलो । ।
शिखे!––––
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