चले थे, सोचते थे,
कुछ करने को, आगे बढ़ने को,
रूक गए बीच में ही,
किस रास्ते जाऊँ, कुछ समझ में आता नहीं ।
लक्ष्य दिखता है, दूर है–
दूर हो कर भी पास ही है,
साधन भी है, पर उपयोग नहीं,
साधन मैं ही हूँ, पर उपयोगकर्ता नहीं,
उसी उपयोगकर्ता की खोज है।
बहाना बना लिया, मैं कर नहीं सकती,
सदा आकांक्षा है सहायता की,
सहायता न मिली है, न मिलेगी
कुछ करने को, आगे बढ़ने को,
रूक गए बीच में ही,
किस रास्ते जाऊँ, कुछ समझ में आता नहीं ।
लक्ष्य दिखता है, दूर है–
दूर हो कर भी पास ही है,
साधन भी है, पर उपयोग नहीं,
साधन मैं ही हूँ, पर उपयोगकर्ता नहीं,
उसी उपयोगकर्ता की खोज है।
बहाना बना लिया, मैं कर नहीं सकती,
सदा आकांक्षा है सहायता की,
सहायता न मिली है, न मिलेगी
नाव को ठेलते जाओ, समुद्र पार हो जाएगा।
किनारे पर जाकर स्वयं सन्तोष हो जाएगा।
संतोष, शान्ति और आनन्द का सम्मिश्रण–
व्यथाओं का चिन्तन ही असत्य है।
दु:ख न था, न है और न रहेगा।
दु:ख एक मरीचिका है।
इसी भ्रमजाल में डूब कर–
व्यथाओं का गान अभीष्ट नहीं।
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